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Sunday, 29 June 2014

सार छंद//छन्न पकैया/परिचय


सार छंद एक अत्यंत सरल, गीतात्मक एवं लोकप्रिय मात्रिक छंद है.

हर पद के विषम या प्रथम चरण की कुल मात्रा १६ तथा सम या दूसरे चरण की कुल मात्रा १२ होती है. अर्थात, पदों की १६-१२ पर यति होती है.

पदों के दोनों चरणान्त गुरु-गुरु (ऽऽ, २२) या गुरु-लघु-लघु (ऽ।।, २११) या लघु-लघु-गुरु (।।ऽ, ११२) या लघु-लघु-लघु-लघु (।।।।, ११११) से होते हैं.
किन्तु गेयता के हिसाब से गुरु-गुरु से हुआ चरणान्त अत्युत्तम माना जाता है लेकिन ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं हुआ करती.
अलबत्ता यह अवश्य है, कि पदों के किसी चरणान्त में तगण (ऽऽ।, २२१), रगण (ऽ।ऽ, २१२), जगण (।ऽ।, १२१) का निर्माण न हो.

उदाहरण -
कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! मन बसंत बौराया ।
सुरभित अलसित मधुमय मौसम, रसिक हृदय को भाया ॥

कोयल दीदी ! कोयल दीदी ! वन बसंत ले आयी ।
कूं कूं उसकी प्यारी बोली, हर जन-मन को भायी ॥     (श्री विंध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी ’विनय’)


इसी छंद का एक और प्रारूप है जो कभी लोक-समाज में अत्यंत लोकप्रिय हुआ करता था.
किन्तु अन्यान्य लोकप्रिय छंदों की तरह रचनाकारों के रचनाकर्म और उनके काव्य-व्यवहार का हिस्सा बना न रह सका. सार छंद के इस प्रारूप को ’छन्न पकैया’ के नाम से जानते हैं.

सार छंद के प्रथम चरण में ’छन्न-पकैया छन्न-पकैया’ लिखा जाता है और आगे छंद के सारे नियम पूर्ववत निभाये जाते हैं. ’छन्न पकैया छन्न पकैया’ एक तरह से टेक हुआ करती है जो उस छंद की कहन के प्रति श्रोता-पाठक का ध्यान आकर्षित करती हुई एक माहौल बनाती है और छंद के विषय हल्के-हल्के में, या कहिये बात की बात में, कई दफ़े गहरी बातें साझा कर जाते हैं.

यह कहना भी प्रासंगिक होगा कि सार छंद की इस पुरानी शैली को पुनः लोक-व्यवहार के मध्य प्रचलित करने का श्रेय ओबीओ मंच को जाता है.मंच के प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ने इस लुप्तप्राय विधा को इस मंच के माध्यम से पुनः सफलतापूर्वक प्रतिस्थापित किया है.

छन्न पकैया छन्न पकैया, बजे ऐश का बाजा,
भूखी मरती जाये परजा, मौज उडाये राजा |

छन्न पकैया छन्न पकैया, सब वोटों की गोटी,
भूखे नंगे दल्ले भी अब ,खायें दारु बोटी |

छन्न पकैया छन्न पकैया, देख रहे हो कक्का,
जितने कि बाहुबली यहाँ पर, टिकट सभी का पक्का |

छन्न पकैया छन्न पकैया, हर जुबान ये बातें
मस्ती मस्ती दिन हैं सारे, नशा नशा सी रातें |

छन्न पकैया छन्न पकैया, डर के पतझड़ भागे
सारी धरती ही मुझको तो, दुल्हन जैसी लागे |

छन्न पकैया छन्न पकैया, बात बनी है तगड़ी
बूढे अमलतास के सर पर, पीली पीली पगड़ी |   (श्री योगराज प्रभाकरजी)

*****

--सौरभ


ज्ञातव्य : आलेख का कथ्य उपलब्ध जानकारियों पर आधारित है.

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