बार
बार वो झाँका करता।
घंटों
मुझको ताका करता।
रंग-रूप
ज्यों एक नगीना,
क्या
सखि साजन?
ना, आईना!
42)
जहाँ
रहूँ वो रहता याद।
मन-आँगन
उससे आबाद।
वो
मेरा सच्चा मनमीत,
क्या
सखि साजन?
ना
सखि, गीत!
43)
जब
तब वो उपदेश सुनाए।
कर
न सकूँ जो मन में आए।
शाश्वत
प्रेम सिखा हिय जीता,
क्या
सखि प्रेमी?
ना
सखि, गीता!
44)
चाहे
देखूँ बरसों बाद।
नज़र
पड़े सब आए याद।
कैसे
भूलूँ वो है खास,
क्या
सखि प्रियतम?
ना, इतिहास!
45)
आते
जाते नज़र मिलाता।
स्वागत
में बाहें फैलाता।
घर
गुलशन का वो है राजा,
क्या
सखि साजन?
ना, दरवाजा!
46)
जब
नैया हिचकोले खाए।
बुज़दिल
बढ़कर पास न आए।
हँसे
दूर से, करे इशारा,
क्या
सखि, साजन?
नहीं, किनारा!
47)
जब
से उसने नाता जोड़ा।
पल
भर को भी हाथ न छोड़ा।
सत्य
कहूँ सखि मैं ना झूठी,
क्या
वो साजन?
नहीं, अँगूठी!
48)
महफिल-महफिल
रंग जमाए।
अपने
हाथों भंग पिलाए।
मधुर-मदिर
लगते उसके गुन,
क्या
सखि प्रियतम?
ना
सखि, फागुन!
49)
जाने
कौन दिशा से आया।
मुखड़ा
चूमा प्यार जताया।
सखि, मैं हो गई
लालम-लाल,
क्या
सखि साजन?
ना
री गुलाल!
50)
इंतज़ार
में उसके रीते।
गिन-गिन
दिवस महीने बीते।
आन
रंग दी चुनरी-चोली,
क्या
सखि साजन?
ना
री होली।
51)
अगर
करे वो मुझसे बात।
दिखने
लगती दिन में रात।
मादक
हो जाता हर अंग,
क्या
सखि साजन?
ना
सखि, भंग।
52)
उसकी
गोद बहुत मन भाए।
नए
नज़ारे नित्य दिखाए।
खिली
वादियाँ, झरने पर्वत,
क्या
सखि प्रियतम?
ना
री कुदरत!
53)
अगर
लबों से लब छू जाए।
अंतर्घट
तक प्यास बुझाए।
बिन
उसके जग लगता फ़ानी,
क्या
सखि साजन?
ना
सखि पानी!
54)
मुझे
देख जब वो मुस्काता।
सम्मोहित
मन खिल खिल जाता।
छू
लूँ तो कहता मत छेड़,
क्या
सखि साजन?
ना
सखि पेड़!
-कल्पना रामानी
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