31)
जब
बहार बागों में आए।
कहीं
दूर से मुझे बुलाए।
मिलने
को मन होता बेकल।
क्या
सखि साजन?
ना
सखि कोयल!
32)
बाहुपाश
फैला सुविशाल।
मुझे
जकड़ ले करे धमाल।
पोर-पोर
हो जाता कूल।
क्या
सखि साजन?
ना
सखि, पूल!
33)
चलते-चलते
वो इतराए।
तान
छेड़कर सुर में गाए।
झूम
उठे सुन-सुन मन पागल।
क्या
सखि साजन?
ना
सखि, पायल!
34)
संग
चले वो सुख दुख बाँटे।
पथ
की हर बाधा को छाँटे।
चूमे, चाटे, काटे पल-पल।
क्या
सखि साजन?
ना
सखि, चप्पल!
35)
सुंदरता
की वो है खान।
गुण
इतने, क्या करूँ बखान।
नज़र
मिले गम जाती भूल।
क्या
सखी साजन?
ना
सखि, फूल!
३६)
प्यारा
लगता उसका साथ।
रोज़
मिलाता मुझसे हाथ।
बने
हमकदम अपना मान,
क्या
सखि साजन?
ना
सखि लॉन!
37)
जब
से वो जीवन में आया।
रोम-रोम
में प्यार समाया।
खिले
फूल सा महका तन-मन,
क्या
सखि साजन?
ना
सखि, यौवन!
38)
सखी!
रात खिड़की से आया।
फूँक
मारकर दिया बुझाया।
चैन
लूट ले गया ठगोरा,
क्या
सखि साजन?
नहीं, झकोरा!
39)
उससे
जुड़े हृदय के तार।
मुझे
बुलाता बारंबार।
बोल
सुरीले, सुमधुर टोन,
क्या
सखि, साजन?
ना
री, फोन!
40)
उससे
मेरी रातें रोशन।
संग
जागता रहता बन-ठन।
रूठे
तो मन करता धक-धक
क्या
सखि साजन?
ना
सखि, दीपक?
-कल्पना रामानी
No comments:
Post a Comment