कर में बसते देवता, कर दर्शन नित प्रात
एक नए संकल्प से दिन की हो शुरुवात।
कर दाता, कर दीन भी, जैसा करें प्रयोग।
छिपा हुआ हर हाथ में, सुख दुख का संजोग।
दिखलाती हर रेख है, जीवन की तस्वीर।
अपने हाथ सँवार लें, खुद अपनी तकदीर।
अपनेपन से है बड़ा, भाव न दूजा कोय।
हाथ मिलें तो गैर भी, पल में अपना होय।
गुस्से
में जब कर उठे, मन
हो जाता खिन्न।
सहलाए
कर प्यार से, तो
हो वही प्रसन्न।अंतर में चाहे भरा, कितना भी दुर्भाव।
होता स्नेहिल स्पर्श से, पशु मन में बदलाव।
कर से ही निर्माण हैं, कर से ही विध्वंस
या तो मनुज कहाइए, या फिर दनुज नृशंस।
-कल्पना रामानी
2 comments:
बेहतरीन प्रस्तुति
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Bahut hu behtrin dohe aapka abhar .
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